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कोरोनाफोबिया से बचने का फॉर्मूला- हर बदलाव पर शक न करें; मान लें फ्लू और मलेरिया की तरह यह वायरस भी जीवन का हिस्सा बना रहेगा

लगातार घरों में कैद रहना और हर तरफ कोरोनावायरस की खबर सुनकर लोगों में बेचैनी बढ़ रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि इसका सबसे बुरा असर उन पड़ रहा है जो पहले से बेचैनी और ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर यानी ओसीडी के मरीज हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के विशेषज्ञोंका कहना है कि दिमागी हालत को सुधारने के लिए सबसे पहले खुद पर भरोसा रखकरमजबूत बनेंऔरवायरस से जुड़ी ऐसी खबरों से दूरी बनाएं जो परेशान करती हैं, क्योंकि यह मान लेना चाहिए के कोरोना से मुक्ति मिलने में वक्त लगेगा।

दिन में 6 बार हाथ धोने से कोरोना का खतरा 90% तक कम होगा

ये वायरस पूरी तरह खत्म नहीं होगा और हमें इसी के साथ खुद को बचाते हुए जीने की आदत डालनी होगी।एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं का भीकहना है कि दिन में कम से कम 6 बार हाथ धोकर और चेहरा ढककर कोरोना संक्रमण का खतरा 90% तक कम किया जा सकता है।

मनोरोग विशेष डॉ. अनामिका पापड़ीवाल से जानिए कैसे दूर करें कोरोनाफोबिया -

पहले समझें- बेचैनी, तनाव या डर कब और कैसे बढ़ रहा है?

  • पहला मामला:सबसे ज्यादा बेचैनी और तनाव उन लोगों में बढ़ रहा है जो घर से बाहर निकल रहे हैं, जिन्होंने ऑफिस जाना शुरू किया है, जो सामान की खरीदारी करने बाजार जा रहे हैं। अगर आसपास कोई पॉजिटिव मरीज मिल जाता है तो बेचैनी और बढ़ती है। उन्हें कई घंटों तक यही डर सताता है कि कहीं वो संक्रमित तो नहीं या घर वापस जाते समय वायरस तो नहीं लेकर जा रहे हैं।
  • दूसरा मामला: दूसरी तरह के सबसे ज्यादा मामले बुजुर्गों में देखे जा रहे हैं, जो परेशान होकर बाहर निकलने की कोशिश कर रहे हैं। बेचैनी और तनाव के कारण उनकी परिवार के लोगों से बहस भी हो रही है।
  • तीसरा मामला: तीसरी कैटेगरी में वो पेरेंट्स शामिल हैं, जिनके लिए सबसे बड़ी चिंता बच्चे हैं। कुछ समय के लिए ही सही बच्चे पार्क में जा रहे हैं तो वे क्या छू रहे, किससे बात कर रहे हैं, वापस आने पर कहीं वो संक्रमण लेकर नहीं आ रहे हैं। ऐसे मामले पेरेंट्स का तनाव बढ़ा रहे हैं।

कब अलर्ट हो जाएं
मुंह का सूखना, शरीर का सुन्न पड़ना, नींद न आना, पैनिक अटैक के साथ आधी रात को जागना जैसे लक्षण दिख सकते हैं। कुछ मनोरोगी हाइपोकॉन्ड्रिऑसिस से पीड़ित होते हैं, जिसका मतलब है कि वे अपनी बेचैनी को डर समझ लेते हैं। इसे इलनेस एंजायटी डिसऑर्डर भी कहते हैं।

ये मरीज चिन्ता अधिक करते हैं। ऐसे मरीज अगर डॉक्टर के पास जाते हैं तो उनमें कोई बीमारी नहीं पाई जाती है। कई बार इसके बाद भी वे संतुष्ट नहीं होते और चिंता जारी रहती है।

बचाव के पांच तरीके: इसे खुद भी समझें और दूसरों को भी समझाएं

  • 1.खुद का ध्यान निगेटिव खबरों से डायवर्ट करें

बेचैनी की वजह कोरोना के संक्रमण का डर और मौत का खतरा है। विशेषज्ञों का कहना है कि देश में 80 फीसदी कोरोना के मरीज बिना दवा के ठीक हो रहे हैं। इसलिए डरने या बेचैन होने की जरूरत नहीं है। इस दौरान निगेटिव खबरों से बचें। देश में कोरोना की स्थिति को समझने के लिए खबरों को कुछ समय दें, लेकिन दिनभर टीवी पर सिर्फ इसे ही देखते न रहें।

  • 2. रोजाना एक घंटा योग, एक्सरसाइज या मेडिटेशन करें

जितना आप कोरोनावायरस के बारे में सोचेंगे ज्यादातर निगेटिव ही सोचेंगे, इसलिए दिमाग को रिलैक्स होने दें। शरीर में ऑक्सीजन का लेवल बढ़ाएंगे तो खुद दिनभर तरोताजा पाएंगे। इसके लिए सुबह रोजाना कम से कम एक घंटा योग, एक्सरसाइज या मेडिटेशन करें। ये मन में सकारात्मक विचार के साथ ऊर्जा देने का काम भी करेंगे।

  • 3. दिनभर अपने शरीर की हरकत पर ध्यान न दें

बाहर से आने या किसी से मिलने के बाद मामूली सर्दी-खांसी आने पर लोग बेचैन हो जाते हैं। दिनभर अपने शरीर की हर हरकत पर नजर रखते हैं। ऐसे में हर बदलाव को वह शक की नजर से देखते हैं। इससे बचने के जरूरत है। अगर आप दिन में कई बार हाथ धोते हैं, बाहर निकलने पर मास्क लगाते हैं, वापस आने पर नहाते हैं और कपड़े धोते हैं तो परेशान होने या तनाव लेने की जरूरत नहीं है। इतनी सावधानी पर्याप्त है।

  • 6. जैसे मलेरिया-फ्लू के साथ रहना सीखा है, वैसे ही इसे आम वायरस समझें

डॉ. अनामिका पापड़ीवाल के मुताबिक, कोरोना अब जीवन का हिस्सा बन गया है, लेकिन डरना नहीं है। जैसे मलेरिया और फ्लू जैसी बीमारियों से निपटने के लिए हम सावधानी अपनाते हैं। वैसे ही कोरोना के लिए भी करना है। दिनभर टीवी या वीडियो न देखते रहें। शरीर को एक्टिव रखें। अपनों से फोन पर बात करें। अपनी हॉबी पूरी करने के लिए खुद को वक्त दें।

  • 5. जब बेचैनी की वजह समझ न आए तो विशेषज्ञ को फोन करें

इन दिनों सरकार ने टेलीमेडिसिन की सुविधा शुरू की है। चाहें तो सरकारी मदद या अपने डॉक्टर को फोन पर हालात बताकर सलाह ले सकते है। सुधार न दिखने पर काउंसलिंग ही बेहतर विकल्प है ताकि उस कारण को समझा जा सके जो तनाव या बेचैनी की जड़ है। साइकोथैरेपी और दवाओं से इलाज किया जा सकता है।



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